"बंदिशे तू यह तोड़ दे,जंजीरे तू यह खोल ले,कर ले खुद को आज़ाद तू,राहें मंज़िल की ओर,तू यह मोड़ ले। "
कभी चट्टानों से,कभी पत्थरो से,तू टकराएगा,कभी समाज की कश्मकश मेंउलझ जायेगा,लेकिन रुकना नहीं तू,काम अपना करता जाना,जब तू परिश्रम करता जायेगा,आसमान भी तेरे आगे झुख जायेगा।
लोग क्या कहेंगेइस पर ना गौर करकाम अपना करता जाफ़िज़ूल का ना शोर करजब सफल हो जायेगाशोर खुदबखुद मच जायेगाजब तू परिश्रम करता जायेगा,आसमान भी तेरे आगे झुख जायेगा।
दर्द तो यहाँ हर किसी को मिलता है,कोई आगे बढ़ जाता है,कोई टूट जाता है,कोई मंज़िल भूल जाता हैतू टूटना नहीं,मंज़िल भूलना नहीं,जब खुद की मरहम खुद बन जायेगातेरा दर्द भी चकमा खा जायेगा,काम अपना करता जाना,जब तू परिश्रम करता जायेगा,आसमान भी तेरे आगे झुख जायेगा।
कभी धुप होगी,कभी छाँव होगी ,कभी पूनम का उजाला होगा ,कभी अमावस का अँधेरा होगा ,जब तू इन सब में रहना सिख जायेगा,सफर तेरा खूबसूरत बन जायेगा,काम अपना करता जाना,जब तू परिश्रम करता जायेगा,आसमान भी तेरे आगे झुख जायेगा।
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