"बंदिशे तू यह तोड़ दे, जंजीरे तू यह खोल ले, कर ले खुद को आज़ाद तू, राहें मंज़िल की ओर, तू यह मोड़ ले। " कभी चट्टानों से, कभी पत्थरो से, तू टकराएगा, कभी समाज की क…
Continue reading »कभी उतार तो, कभी चढ़ाव, कभी धूप तो, कभी छांव, कभी सूखा तो, कभी बरसात। इन्हीं विपरीत दिशाओं के बीच ही तो बसती है अपनी ज़िन्दगी। आप कैसे इन उतारो और चढ़ावो को…
Continue reading »वक़्त का पहिया चलता है, कभी किसी को ख़ुशी तो, कभी किसी को गम मिलता है, अभी तुझे गम मिला है, खुशियां भी तुझे मिलेगी, इस बंजर जमीन पर भी कली खिलेगी, क्यों अपन…
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