पास होके भी


कभी कभी क्या होता है ना, कुछ लोग महज़ दिखावे में आ जाते है और वो रंग रूप को देख कर आकर्षित हो जाते है।
लिहाजा वो नए रिश्ते बना लेते है।
वो इस आकर्षण को प्यार समझ बैठते है और एक दूसरे से कई वादे कर देते है।
लेकिन वक़्त के साथ आकर्षण का रंग फिका पड़ने लगता है। लेकिन कुछ वादों की वजह से एक दूसरे को छोड़ना मुश्किल हो जाता है। दिल से ना चाहते हुवे भी बस प्यार का दिखवा करते है। लिहाजा,
वो साथ रहकर भी,
वो पास रहकर भी,
वो खास होके भी,
दूर से रहने लग जाते है।
"पास होके भी" कविता इन्हीं भावों और हालातो को बतलाती है।

तेरे प्यार की अब,
हवा बदलने लगी है,
आमने सामने होके भी 
दूरियां बनने लगी है,
तू पास होके भी,
दूर सी होने लगी है।


हर पल होने वाली बातें अब
चंद पलों में ही 
खत्म होने लगी है,
पारदर्शी जैसे रिश्ते में भी अब
धूल जमने लगी है,
तू पास होके भी,
दूर सी होने लगी है।


तेरे आने से रोशन होने 
वाली ज़िन्दगी अब 
अंधेरे में घुलने लगी है,
चांदनी रातों में भी अब
अमावस दिखने लगी है,
तू पास होके भी,
दूर सी होने लगी है।


तेरी तस्वीर से ही,
खिलने वाली अंखियां अब,
तेरी आंखो में होके भी,
नम सी होने लगी है,
दिल से चाहने की चाह,
अब मजबूरी बनने लगी है,
तू पास होके भी,
दूर सी होने लगी है।


 ©Mukeshyasdiary

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