वक़्त का पहिया चलता है,कभी किसी को ख़ुशी तो,कभी किसी को गम मिलता है,अभी तुझे गम मिला है,खुशियां भी तुझे मिलेगी,इस बंजर जमीन पर भी कली खिलेगी,क्यों अपने वजूद तो यूहीं सुलगा रहा है,क्यों तू सब्र के इम्तिहान से पहले हीखुद को हरा रहा है,पता है ना तुझे मौत किसी का हल नहीं,क्यों अपने आप को कायर साबित करवा रहा है।क्यों तू मौत को लगे लगा है।
वक़्त ने सब को ,कभी ना कभी,कहीं ना कहीं सताया है,कभी किसी कोजमीन पर उतारा तोकभी किसी कोफलक पर चड़ाया है,कभी किसी कोगमों से रुलाया है तोकभी किसी कोखुशियों में झुलाया है,आज तू गम से रो रहा हैकल खुशियों के आंसू भी हंसेगाक्यों तू बिना सब्र किए ही जा रहा है,क्यों तू बिना संघर्ष किए ही जा रहा है,क्यों तू चंद परेशानियों से अपनों को रुला रहा हैक्यों तू मौत को गले रहा है।
©mukeshyasdiary
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