क्यों मेरे रब्बा


मेरी रूह भी, अब थक रही है,
अरसे से यह दर्द जो सह रही है। 
क्यों नहीं मिटती यह तेरी यादें,
क्यों नहीं सुनी जाती मेरी फरियादे।
क्यों मेरे रब्बा ओह रब्बा
क्यों हो रहा मै खुद से ही खफा।

ज़िन्दगी से खफा है, मेरा वास्ता,
अंधेरों से गिरा है, मेरा रास्ता।
क्यों यह सूरज की किरणें मुझ तक पहुंचती नहीं,
क्यों मेरे दिल की आवाज तुझ तक पहुंचती नहीं।

क्यों मेरे रब्बा ओह रब्बा
क्यों हो रहा मै खुद से ही खफा।
रात का यह अंधेरा,
क्यों बनने लगा मेरा सवेरा,
गमों का यह शहर,
क्यों बनने लगा मेरा बसेरा।
क्या कभी ऐसा वक्त आएगा,
जब छाएंगे बादल प्यार के
और खुशियां यह बरसाएगा,
या फिर जैसा चल रहा है
वैसा ही चलता जाएगा।

क्यों मेरे रब्बा ओह रब्बा
क्यों हो रहा मै खुद से ही खफा।
©Mukeshyasdiary
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